जल स्रोत का हुआ संरक्षण तो पानी की धारा हुई तेज
पौड़ी। विकास खंड पोखड़ा के सिलेत गांव में ग्रामीणों के हाथ से हाथ मिले, तो उन्होंने सरकारी योजनाओं के माध्यम से गांव के प्राकृतिक धारे की तस्वीर बदल दी। गांव के समीप स्थित इस नौले-धारे की स्थिति बहुत खराब थी और पानी का डिस्चार्ज भी कम हो गया था। जल स्रोतों के संरक्षण को देखते हुए यहां मनरेगा और सारा स्प्रिंग शेड एंड रिज्युविनेशन अथॉरिटी के अंतर्गत कार्य कराये गये। इसके तहत पौधरोपण, चाल-खाल, खंतियां और चेकडैम बनाये गये। जिसके चलते आज स्रोत में छह गुना पानी की मात्रा बढ़ गयी।
प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण, जल स्रोत संवर्धन, जल स्रोत पुनरोद्धार जैसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। यह योजनाएं काफी लाभप्रद साबित हो रही हैं। यहां बता दें कि विकास खंड पोखड़ा के सिलेत गांव के समीप प्राकृतिक जल स्रोत देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे सूखता जा रहा था। यहां पानी भरने के भी कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। पानी भी बेकार बहता रहता था। इसे देखते हुए विकास विभाग ने जल स्रोत को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान ने बताया कि वर्ष 2024 में सर्वप्रथम मनरेगा के अंतर्गत जल संचयन और भूजल पुनर्भरण के लिए स्रोत के ऊपर की दिशा में 226 रिचार्ज पिट, 300 खंतियां और दो चाल-खाल बनाये गये। जल स्रोत को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए आठ कच्चे चेकडैम बनाये गये। इसके अलावा स्रोत के कैचमेंट एरिया में विभिन्न प्रजाति के 200 पौधे रोपे गये। इसके बाद सारा के अंतर्गत जल स्रोत से निकलने वाले पानी को संग्रहित करने के लिए अंडरग्राउंड टैंक, मवेशियों के लिए चरी सहित स्रोत के आसपास सुधारीकरण कार्य कराये गये। उन्होंने बताया कि जल स्रोत जिला विकास अधिकारी मनविंदर कौर ने बताया कि संरक्षण एवं पुनर्भरण कार्य में तीन लाख 94 हजार रूपये की लागत आयी। इसमें से एक लाख 52 हजार रूपये ग्रामीणों को मजदूरी के तौर पर मिले। उन्होंने बताया कि पूर्व में जल स्रोत से मात्र 0.75 एलपीएम लीटर प्रति मिनट पानी डिस्चार्ज होता था, अब यह मात्रा बढ़कर 4.5 एलपीएम तक पहुंच गयी है।