उत्तरकाशी आपदा ने फिर दिलाई केदारनाथ आपदा की दर्दनाक याद

2013 में केदारनाथ आपदा में भी मलबे में दबे थे कई यात्री, आज तक नहीं चला पता
-उत्तरकाशी आपदा में भी मलबे में दबे हैं कई लोग
DESK THE CITY NEWS
उत्तरकाशी। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में मंगलवार को आई बादल फटने की घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोंर कर रख दिया है। विशेषकर हर्षिल घाटी के खीरगंगा गाड़, धराली, और आसपास के क्षेत्रों में जो तबाही का मंजर देखने को मिला, उसने लोगों के जेहन में 2013 की भयावह केदारनाथ आपदा की यादें ताजा कर दी हैं। एक बार फिर प्रकृति के इस रौद्र रूप ने यह साबित कर दिया है कि पर्वतीय क्षेत्रों में मानसून काल कितना खतरनाक और जानलेवा हो सकता है। उत्तरकाशी की यह आपदा सिर्फ एक प्रशासनिक चुनौती नहीं, बल्कि एक भावनात्मक झटका भी है। जिसने 2013 की केदारनाथ त्रासदी के जख्मों को फिर से कुरेद दिया है। जब तक हम पहाड़ों के साथ सामंजस्य नहीं बैठाएंगे, प्रकृति बार-बार हमें चेतावनी देती रहेगी।
अचानक आया सैलाब, बहते मकान, बर्बाद होती जिंदगियां
उत्तरकाशी की खीरगाड़ नदी के ऊपर पहाड़ों से अचानक ऐसा सैलाब आया कि चंद मिनटों में पानी का स्तर इतना बढ़ गया कि किनारे बसे मकान, दुकानें और होटल इसकी चपेट में आ गए। स्थानीय निवासियों ने बताया कि सब कुछ अचानक हुआ, जैसे 2013 में मंदाकिनी नदी ने उफान मारा था। तेज बहाव में कई दुकानें बह गईं, मकानों की नींव उखड़ गई, और लोगों को जान बचाकर भागना पड़ा।

ये वही मंजर है, जो हमने केदारनाथ में देखा था
धराली और खीरगाड़ के लोगों ने कहा कि 2013 की तबाही की तस्वीरें आज भी उनकी आंखों में बसी हुई हैं। अब जब उन्होंने फिर से वैसी ही गड़गड़ाहट, बारिश की धार और बहते मकानों का मंजर देखा, तो उनकी रूह कांप उठी। बुजुर्गों का कहना है कि इस बार भी प्रकृति ने समय से पहले कोई चेतावनी नहीं दी, और लोगों को जान बचाने के लिए खुद ही संघर्ष करना पड़ा।
क्या पहाड़ों की सहनशक्ति दे रही है जवाब
उत्तराखंड के संवेदनशील पर्वतीय इलाकों में हर साल इस तरह की आपदाएं बार-बार यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या अब पहाड़ों की सहनशक्ति जवाब दे रही है? अनियोजित निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, और खनन ने पर्वतों की प्राकृतिक बनावट को कमजोर कर दिया है। वैज्ञानिक और पर्यावरणविद वर्षों से चेताते आ रहे हैं कि अगर संतुलन नहीं बनाया गया, तो आने वाले वर्षों में ऐसी आपदाएं और भी भयानक रूप ले सकती हैं।
सरकार की तैयारियों पर सवाल
हालांकि राज्य सरकार और जिला प्रशासन समय-समय पर आपदा पूर्व तैयारियों के दावे करते हैं, लेकिन जब भी कोई आपदा आती है, तो व्यवस्थाएं धराशायी नजर आती हैं। उत्तरकाशी में भी ऐसा ही देखने को मिला, अलर्ट के बावजूद कई गांवों तक समय पर सूचना नहीं पहुंच पाई। नतीजतन लोग तब तक खतरे के बीच आ चुके थे।
भविष्य की राह: सतर्कता और सतत विकास की जरूरत
उत्तरकाशी की यह त्रासदी फिर से यह सिखा गई है कि हमें पर्वतीय विकास के मॉडल को पुनः परिभाषित करने की जरूरत है। केवल सड़कें और होटल बनाने से पहाड़ों का विकास नहीं होता, बल्कि हमें स्थानीय पर्यावरण, जलवायु और भूगर्भीय स्थितियों को समझकर ही योजनाएं बनानी होंगी।

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