शर्म आनी चाहिए सरकारी सिस्टम के नुमाइंदों को

उत्तराखंड प्रहरी ब्यूरो / जोगेंद्र मावी,
हरिद्वार। सरकारी सिस्टम में ईमानदार लोग है और अपने कतृव्यों को जिम्मेदारी से निर्वहन करते हैं: ये वाक्य केवल कहने मात्र ही है। हरिद्वार में बड़ा ही शर्मशार करने वाला कृत्य सामने आया। जो युवा जीवन भर शवों को श्मशान घाट तक पहुंचाने के लिए वाहन के साथ और रखने के लिए फ्रीजर उपलब्ध कराता रहा उसके शव के साथ किया दुर्गति हुई किसी को छिपी नहीं है। हालांकि सत्ता पक्ष को तो कभी कमी या परेशानी नजर आती ही नहीं, लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं को जरूर पीड़ा हुई। कुछ समाजसेवियों ने अपनी पीड़ा भी व्यक्त की, लेकिन समय गुजर जाने के बाद सभी भूल जाते हैं।
पंजाबी धर्मशाला के प्रबंधक लक्की शर्मा की अचानक तबीयत बिगड़ने से मृत्यु हो गई। उनके शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया गया। लेकिन जब परिजनों ने अगले दिन शव की दुर्गति हुई देखी तो मामला सुर्खियों में आ गया। मामले में जिला अस्पताल प्रबंधन की कमी निकाली गई तो सरकार को भी कोसा गया। लेकिन जो प्रकरण हुआ उससे मानवता शर्मशार हुई। ऐसा लगा की जीवन में भागदौड़, कमाई, भौतिकता के लिए धन संग्रह करना निरर्थक है।
व्यापारी एवं पंजाबी समाज के पदाधिकारी प्रवीण कुमार अपनी फेसबुक पेज पर लिखते है कि आज़ इंसानियत को शर्मिंदा करने वाली घटना जिला अस्पताल में हुई जो लक्की शर्मा उम्र भर मोक्ष जाते व्यक्ति को 24*7 अंतिम शव यात्रा वाहन और फ्रीज़र उपलब्ध करवाता रहा कोरोना काल में जब परिवार वाले भी हाथ लगाने से डरते थे तब दिन रात ख़ुद गाड़ी चला कर एक एक दिन में कनखल के बीसियों चक्कर लगा कर छोड़ कर आता था आज़ सरकारी सिस्टम की लापरवाही से उसकी मौत के बाद फ्रिज उपलब्ध ना होने की वजह से चूहों ने उसकी आँखे सिर को नोच डाला लेकिन कोई भी अधिकारी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं शर्म आनी चाहिए ऐसे जिला अस्पताल के अधिकारियों को जो पूरे सिस्टम के मर चुके जमीर का प्रमाण हैं जहाँ इंसान मरने के बाद भी सुरक्षित नहीं है ये एक मृत व्यक्ति और उसके परिवारजनों की आत्मा की हत्या है जिसका दंड ईश्वर इन्हें जरूर देगा ओइम शांति ओइम।
पंजाबी धर्मशाला के प्रबंधक लक्की शर्मा की अचानक तबीयत बिगड़ने से मृत्यु हो गई। उनके शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया गया। लेकिन जब परिजनों ने अगले दिन शव की दुर्गति हुई देखी तो मामला सुर्खियों में आ गया। मामले में जिला अस्पताल प्रबंधन की कमी निकाली गई तो सरकार को भी कोसा गया। लेकिन जो प्रकरण हुआ उससे मानवता शर्मशार हुई। ऐसा लगा की जीवन में भागदौड़, कमाई, भौतिकता के लिए धन संग्रह करना निरर्थक है।
व्यापारी एवं पंजाबी समाज के पदाधिकारी प्रवीण कुमार अपनी फेसबुक पेज पर लिखते है कि आज़ इंसानियत को शर्मिंदा करने वाली घटना जिला अस्पताल में हुई जो लक्की शर्मा उम्र भर मोक्ष जाते व्यक्ति को 24*7 अंतिम शव यात्रा वाहन और फ्रीज़र उपलब्ध करवाता रहा कोरोना काल में जब परिवार वाले भी हाथ लगाने से डरते थे तब दिन रात ख़ुद गाड़ी चला कर एक एक दिन में कनखल के बीसियों चक्कर लगा कर छोड़ कर आता था आज़ सरकारी सिस्टम की लापरवाही से उसकी मौत के बाद फ्रिज उपलब्ध ना होने की वजह से चूहों ने उसकी आँखे सिर को नोच डाला लेकिन कोई भी अधिकारी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं शर्म आनी चाहिए ऐसे जिला अस्पताल के अधिकारियों को जो पूरे सिस्टम के मर चुके जमीर का प्रमाण हैं जहाँ इंसान मरने के बाद भी सुरक्षित नहीं है ये एक मृत व्यक्ति और उसके परिवारजनों की आत्मा की हत्या है जिसका दंड ईश्वर इन्हें जरूर देगा ओइम शांति ओइम।
समाजसेवी मनीष लखानी ने लिखा है कि
24 घंटे शव वाहन की सेवा देने वाले …
24 घंटे शवों के लिए फ्रिज उपलब्ध करने वाले …
Lucky Sharma भाई दुनिया छोड़ गया…
पर उसकी अंतिम गरिमा भी सरकारी लापरवाही ने छीन ली।
जिस फ्रिज में शव सुरक्षित रखा जाना था,
वो खुद महीनों से “मृत” पड़ा था।
और उस खराब फ्रिज में—
चूहों ने शव को कुतरकर उसके अंगों को क्षत-विक्षत कर दिया।
ये सिर्फ एक शव का नहीं,
पूरे सिस्टम के मर चुके ज़मीर का प्रमाण है।
हरिद्वार का जिला अस्पताल
वास्तव में अब “मृत अस्पताल” बन चुका है—
जहाँ सुविधाएँ शून्य, ज़िम्मेदारी शून्य,
और इंसान की इज़्ज़त मौत के बाद भी सुरक्षित नहीं।
फाइल फोटो — लक्की शर्मा
24 घंटे शवों के लिए फ्रिज उपलब्ध करने वाले …
Lucky Sharma भाई दुनिया छोड़ गया…
पर उसकी अंतिम गरिमा भी सरकारी लापरवाही ने छीन ली।
जिस फ्रिज में शव सुरक्षित रखा जाना था,
वो खुद महीनों से “मृत” पड़ा था।
और उस खराब फ्रिज में—
चूहों ने शव को कुतरकर उसके अंगों को क्षत-विक्षत कर दिया।
ये सिर्फ एक शव का नहीं,
पूरे सिस्टम के मर चुके ज़मीर का प्रमाण है।
हरिद्वार का जिला अस्पताल
वास्तव में अब “मृत अस्पताल” बन चुका है—
जहाँ सुविधाएँ शून्य, ज़िम्मेदारी शून्य,
और इंसान की इज़्ज़त मौत के बाद भी सुरक्षित नहीं।
फाइल फोटो — लक्की शर्मा