आरोप लगाया कि चंद पैसों के खातिर बदले गए वार्डों के टिकट
*बिखरे प्रबंधन ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल*
*बगावत के चलते कई वार्डों में प्रत्याशी हारे, दो जगह बागी जीते*
*केवल कोरीडोर और मेडिकल कॉलेज पर रहा नेताओं का फोकस*
हमारे संवाददाता दिनांक 28 जनवरी 2025
हरिद्वार। हरिद्वार नगरनिगम चुनाव में कांग्रेस इस बार बुरी तरह पिछड़ गई। इसका कारण अनुभवहीन नेतृत्व, बिखरा हुआ प्रबंधन और कांग्रेस का रणनीति विहीन चुनाव माना जा रहा है। कांग्रेस ने इस चुनाव में न केवल मेयर सीट पर कब्ज़ा खोया बल्कि उसके पार्षदों की संख्या भी कम हो गई। शिवालिक नगर में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। जिसके चलते कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने काफी रोष है। कई नेताओं ने कहा कि जिन लोगों ने सन् 1980 से लेकर अब तक हमेशा से कांग्रेस का विरोध किया हो अब उन्हीं लोगों के हाथ में हरिद्वार कांग्रेस की बागडोर देकर प्रदेश अध्यक्ष ने अपनी हठधर्मिता के कारण बहुत बड़ा अपराध किया है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चंद पैसों के खातिर महानगर अध्यक्ष ने अपने आकाओं के कहने पर भारी संख्या में टिकटों में हेरफेर कर दिया। प्रदेश कांग्रेस ने जिन नेताओं को अलग अलग वार्डो से टिकट दिए थे महानगर कांग्रेस ने उनको बदलते हुए धोखेधड़ी से अपने चहेतों को टिकट दे दिया जिसका खामियाजा उन्हें पूरे निकाय चुनाव में भुगतना पड़ा। जिसके चलते कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली हाईकमान व प्रदेश प्रभारी से ऊपर से लेकर नीचे तक नेत्तृत्व परिवर्तन की मांग की है।
2018 के चुनाव में कांग्रेस के 18 पार्षद चुनकर आए थे। साथ ही मेयर मुकाबले में पांच हजार की बढ़त बनाकर कांग्रेस ने भाजपा से मेयर सीट छीनकर अपना बोर्ड बनाया था। लेकिन इसबार वह दोनों ही मोर्चों पर फेल रही। दरअसल कांग्रेस इसबार निगम चुनाव में शुरू से ही पिछड़ी दिखाई दी। भाजपा की दो बार की पार्षद रही किरण जैसल का नाम मेयर प्रत्याशी के रूप में सामने आने के बावजूद कांग्रेस कोई गंभीर चुनौती भाजपा के सामने नहीं रख पाई। जिसके बाद सामान्य गृहणी और राजनीति में अनाम अमरेश देवी के सारे चुनाव का भार पार्टी पर ही आ गया लेकिन भाजपा को चुनाव में चुनौती देने की कोई रणनीति कांग्रेस के पास नहीं दिखी। पार्षदों के टिकट वितरण के दौरान भी कांग्रेस में हंगामा मचा रहा। कई वार्डों में स्थापित कार्यकर्ताओं के टिकट काटकर नये लोगों को टिकट थमा दिया गया। जिससे असंतोष पैदा हुआ और कई वार्डों में पार्टी के अपने ही अधिकृत प्रत्याशियों के सामने तलवारें भांजने लगे। चुनाव प्रचार शुरू होने से ऐन पहले करीब दर्जनभर घोषित प्रत्याशियों को बदलने से भी कई वार्डों में विद्रोह के हालत हो गये और ऐसे वार्डों में पुराने कांग्रेसियों ने भी पार्टी लाइन से अलग जाकर बागियों और विपक्ष के प्रत्याशियों को वोट किया। जिसके कारण कई वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं पार्टी से बगावत कर लड़े लोगों ने वार्ड 40, 44 में जीत दर्ज की।
जबकि वार्ड 45 सहित करीब पांच वार्डों में कांग्रेस के प्रत्याशी करीबी अंतर से पिछड़ गए। कुछ वार्डों में बागियों ने मुकाबले को त्रिकोणीय – चतुष्कोणीय बनाकर कांग्रेस को कमजोर किया। जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा।