दीपा माहेश्वरी
चुनाव के दौरान मेयर और पार्षद पद के उम्मीदवार बड़े-बड़े वादों और जनहित के मुद्दों को लेकर जनता के बीच पहुंचते हैं। उनकी रैलियों और प्रचार में जनता की समस्याओं को सुलझाने के वादे सुर्खियों में रहते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं और जीत सुनिश्चित होती है, ऐसा लगता है कि नेता अपने वादों को भूल जाते हैं। जनता के हित और उनकी समस्याएं पीछे छूट जाती हैं, और उनका ध्यान अपने निजी लाभ की ओर मुड़ जाता है।
चुनाव जीतने के बाद नेताओं की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उन्हें न केवल अपने वादों को पूरा करना चाहिए, बल्कि जनता की समस्याओं का ध्यान रखते हुए उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। जनप्रतिनिधियों का असली मकसद जन सेवा होना चाहिए, न कि सिर्फ धन कमाना।
ऐसी स्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या चुने गए नेता जनता के साथ किए गए वादों को याद रखेंगे और उन पर काम करेंगे? लोकतंत्र में जनता का यह अधिकार है कि वे अपने प्रतिनिधियों से जवाबदेही मांगें। नेताओं को चाहिए कि वे जनता के विश्वास का सम्मान करें और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियां निभाएं।