सेम मुखेम नागराजा मन्दिर का पौराणिक महत्व

सेम मुखेम नागराजा मन्दिर का पौराणिक महत्व

उत्तरकाशी। देवभूमि उत्तराखंड में जहाँ चार धामों की महिमा विश्व प्रसिद्ध है, वहीं टिहरी जनपद में स्थित सेम मुखेम धाम को पाँचवाँ धाम भी कहा जाता है। यह मन्दिर मुखेम गांव पट्टी उपली रमोली विकासखंड प्रतापनगर टिहरी गढ़वाल में 13000ई से गढ़वाल रियासत के राजाओं की ओर से इस मन्दिर में पूजा अर्चना की जाती है ।टिहरी राज परिवार सयय सयय पर यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं ।केदार के147वे अध्याय में इस सेम नागराज मन्दिर का पौराणिक महत्व बताया गया है प्राचीन मान्यता है कि यहाँ स्वयं कालिया नाग ने तपस्या कर भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा प्राप्त की थी।
बताया जाता है कि जब कालिया नाग ने यमुना नदी को विषैले प्रभाव से दूषित कर दिया था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें परास्त कर हिमालय की ओर जाकर प्रायश्चित करने का आदेश दिया। कहा जाता है कि कालिया नाग ने आकर सेम मुखेम में कठोर तपस्या की और यहीं अपना प्रायश्चित पूरा किया। इसी कारण इस धाम को नागराज का पवित्र स्थल माना जाता है।
इस धाम की पूजा परंपरा सेमवाल परिवार के पास है। जानकारी के अनुसार यह मंदिर 13वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था और टिहरी नरेश ने इसके लिए ताम्रपत्र भी प्रदान किया था। आज भी सेमवाल परिवार के तीन घराने बारी-बारी से पूजा-अर्चना का दायित्व निभाते हैं।
मंदिर व निर्माण कार्य
रामायण प्रचार समिति के
 ऋषि राम उनियाल के प्रयासों से मंदिर परिसर में मुख्य द्वार और अन्य निर्माण कार्य बिना किसी सरकारी सहयोग के सम्पन्न हुए हैं। आम जनमानस और श्रद्धालुओं के सहयोग से यहाँ मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था प्रारंभ हुई।
प्रत्येक वर्ष 26–27 नवंबर को यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
चुनौतियाँ और अपेक्षाएँ
पूर्व जिला पंचायत सदस्य एवं समाजसेवी देवी सिंह पंवार बताते हैं कि आज भी मंदिर तक पहुँचने वाले मार्ग बहुत दुरुस्त नहीं हैं। बिजली व जल की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। यात्रियों के ठहरने हेतु धर्मशालाओं और अन्य सुविधाओं की तत्काल आवश्यकता है। उनका मत है कि सरकार यदि इसे पाँचवें धाम की मान्यता प्रदान करे तो इस क्षेत्र का विकास तीव्र गति से संभव है।
इसी प्रकार उत्तरकाशी मंदिर जीर्णोद्धार समिति के अध्यक्ष
 अजय प्रकाश बड़ोला का कहना है कि इन प्राचीन मंदिरों का संरक्षण केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि युवाओं के लिए रोजगार सृजन का भी माध्यम है। यदि सरकार यहाँ मूलभूत सुविधाएँ एवं प्रचार-प्रसार योजनाएँ बनाए, तो न केवल पलायन रुकेगा बल्कि स्थानीय युवाओं को आर्थिक मजबूती भी मिलेगी।
श्रद्धा और आस्था
स्वामी सूर्य नारायण गिरी महाराज के अनुसार रवांई घाटी तथा पौड़ी क्षेत्र के लोगों की इस मंदिर के प्रति विशेष आस्था है। अब तो देश-विदेश से भी श्रद्धालु यहाँ पहुँचकर पूजा-अर्चना करते है ।और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति पाते हैं। परंपरा के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष में श्रद्धालु यहाँ आकर ढोल-नगाड़ों के साथ अखंड भजन संध्या आयोजित करते हैं।
अन्य पौराणिक कथा
स्थानीय मान्यता के अनुसार गंगू रमोला, जो इस क्षेत्र के प्रमुख मुखिया थे, उन्होंने भी यहाँ पर कठोर तपस्या कर भगवान के दर्शन पाए। उनकी धर्मपत्नी एवं दो पुत्रों की मूर्तियाँ भी मंदिर परिसर में स्थापित हैं। श्रद्धालु इनकी भी पूजा करते हैं।
प्राकृतिक आकर्षण
सेम मुखेम धाम प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थल है। मंदिर के मुख्य द्वार पर नागराज की विशाल प्रतिमा और उसके ऊपर भगवान श्रीकृष्ण की भव्य प्रतिमा विशेष आकर्षण का केंद्र है। विशाल घंटा मंदिर परिसर को और भी दिव्यता प्रदान करता है।
कैसे पहुँचें
हरिद्वार और देहरादून से यहाँ तक बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है। उत्तरकाशी लम्बगाँव रोड पर स्थित कौडार से सेम मुखेम के लिए सड़क मार्ग है। जो कि मणभागी सौड़
  तक 20 किलोमीटर है श्रद्धालु अपने निजी वाहन एवं बस से जा सकते हैं।मणभागी सौड़ से सेम नागराजा मंदिर के लिए बांज बुरांश के जंगलों के बीच पैदल मार्ग है एवं खड़ी चढ़ाई है जो लगभग एक किलोमीटर है।
 यह मार्ग कठिन जरूर है, परन्तु रमणीय प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है।
सेम मुखेम क्षेत्र के लोग अद्भुत कार्यक्षमता और साहस के लिए जाने जाते हैं। वे देश-विदेश में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। यही कारण है कि सेम मुखेम धाम को पाँचवाँ धाम कहना किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *