MP News: जबलपुर में आधार कार्ड ने 5 साल पहले बिछड़े एक दिव्यांग को उसके अपनों से मिला दिया है.बच्चा 10 जून 2017 को जलगांव के रेलवे स्टेशन से परिजनों से बिछड़ गया था और जबलपुर पहुंच गया था.
Jabalpur News: आधार कार्ड के कई फायदे है. किसी व्यक्ति की यूनिक पहचान से लेकर सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में आधार कार्ड ही उपयोग में आता है, लेकिन आज कल इससे बिछड़ों को मिलाने का काम भी हो रहा है.हम कह सकते है कि यह केवल एक कार्ड नहीं है बल्कि एक ऐसा दस्तावेज बन चुका है जिसके जरिए आप कहीं भी हो,आपकी पहचान कभी भी खत्म नहीं हो सकती.यहां हम आपको आधार कार्ड के मानवीय पक्ष से जुड़ी एक वास्तविक कहानी बताने जा रहे है.
आधार कार्ड ने 5 साल से बिछड़े मासूम दिव्यांग को परिजनों से मिलवाया
जबलपुर में आधार कार्ड 5 साल से बिछड़े एक मासूम दिव्यांग बच्चे को अपने परिजनों से मिलाने में बहुत बड़ा आधार बना. दरअसल परिवार से बिछड़कर जबलपुर पहुंचे मानसिक दिव्यांग लालू को आधार कार्ड ने उसके परिवार से दोबारा मिलवा दिया. बीते 5 सालों से जबलपुर के शासकीय मानसिक अविकसित बालगृह में लालू नामक बालक रह रहा था. यह बच्चा 10 जून 2017 को महाराष्ट्र के जलगांव से गुमशुदा हो गया था. वह ट्रेन में बैठकर जबलपुर पहुंच गया और विजय नगर क्षेत्र में भटक रहा था. 23 जून 2017 को चाइल्ड हेल्पलाइन के सदस्यों ने उसे बालगृह पहुंचाया, जहां उसकी देखरेख की गई.
13 वर्ष की उम्र में परिजनों से बिछड़ गया था बच्चा
बालगृह अधीक्षक रामनरेश पटेल की मानें तो जब लालू उन्हें मिला तो उसकी उम्र करीब 13 वर्ष थी और वह काफी बीमार था.कई दिनों से उसने खाना भी नहीं खाया था, जिसके कारण उसकी हालत बहुत खराब हो गई थी.बालगृह में उसकी देखरेख की गई. उसे पढ़ाया-लिखाया गया और दूसरे बच्चों के साथ उसे विभिन्न एक्टिविटीज सिखाई गई. वैसे अब जाकर पता चला है कि उसका असली नाम अनस शेख है, जिसे बालगृह में लालू नाम दिया गया था.अब लालू 17 वर्ष 10 माह का हो चुका है और काफी कुछ सीख गया है.
बिछड़े परिजनों से कैसे मिला लालू
रामनरेश पटेल ने बताया कि कुछ समय पूर्व जब उसका आधार कार्ड बनवाने के लिए प्रक्रिया शुरू की गई तो पोर्टल पर उसका पहले से आधार कार्ड रिकॉर्ड में दिखाई दिया. जिसके बाद कलेक्टर कार्यालय में यूआईडी विभाग से संपर्क करके उसकी पूरी जानकारी निकाली गई और परिजनों से संपर्क किया गया. जबलपुर में ई गर्वनेंस के जीएम चित्रांशु त्रिपाठी और बालगृह अधीक्षक रामनरेश ने लालू के परिवार की तलाश करने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया.
आखिरकार 1850 शहरों के पिनकोड डालने के बाद उनका पता एवं मोबाइल नंबर मिल गया जिसके बाद उनसे संपर्क किया गया. सोमवार को अनस के परिवार के सदस्य जबलपुर पहुंचे, जहां अनस यानि लालू से मिलकर वे बेहद खुश हुए. दरअसल अनस के माता-पिता की बहुत पहले ही मृत्यु हो चुकी है.
करीब 2 साल की उम्र से वह अपने जीजा शेरखान के पास रह रहा था. मानसिक रूप से दिव्यांग होने के बावजूद शेरखान ने उसकी देखरेख की लेकिन 10 जून 2017 को वह जलगांव के रेलवे स्टेशन से गायब हो गया और जबलपुर पहुंच गया.उसके खो जाने से पूरा परिवार दुखी था लेकिन जबलपुर में ई गर्वनेंस के जीएम चित्रांशु त्रिपाठी एवं बालगृह अधीक्षक के प्रयासों से अनस अब अपने घर जा सकेगा.
चाइल्ड वेलफेयर कमिटी में रखा जाएगा पूरा मामला
बहरहाल अनस को उनके परिजनों के सुपुर्द करने के पहले चाइल्ड वेलफेयर कमिटी में यह पूरा मामला रखा जाएगा और उसके परिजन होने का दावा करने वालों के साथ उसकी पुरानी पहचान वेरीफाई की जाएगी. जिसके बाद परिवार के सदस्य उसे अपने साथ घर ले जा सकेंगे. शेरखान ने न सिर्फ आधार कार्ड सर्विस के लिए सरकार का धन्यवाद दिया बल्कि बालगृह के अधिकारियों का भी आभार जताया. इसके साथ ही शेरखान ने कहा कि वे अब अनस को पढ़ाने एवं अच्छी परवरिश देने का प्रयास करेंगे.
आसान नहीं था लालू के परिजनों को खोजना
लालू का आधार बनाने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ने पर संस्था के अधीक्षक रामनरेश पटेल ने ई-गवनेंस के जीएम चित्रांशु त्रिपाठी को बताया.सबसे बड़ा चैलेंज यह रहा कि लालू के पास न जन्मतिथि थी और न ही कोई असल नाम. चित्रांशु त्रिपाठी के सामने यह समस्या थी कि किशोर का आधार कैसे ट्रेस किया जाए.किसी आधार को हासिल करने के लिए दो ही रास्ते हैं. पहला डोमोग्राफिक,दूसरा बायोमैट्रिक लेकिन कुछ डाटा फीडिंग दोनों के लिए ही जरूरी है.
1850 इलाकों के पिन कोड डालने के बाद मिला पता
हर हाल में किशोर को परिजनों से मिलाने की ठान चुकी ई-गवनेंस के अधिकारियों ने कई कर्मचारी लगाए गए. पूरे प्रदेश के चुनिंदा पिन कोड की एंट्री की गई लेकिन हर एंट्री रिजेक्ट हुई. ई-गवनेंस टीम के सामने बायोमैट्रिक के अलावा कोई चारा नहीं रहा. सिस्टम में लालू के फिंगर प्रिंट लेने के बाद यह पुख्ता हो गया कि पहले ही आधार जनरेट हो चुका है. इसके आगे सिस्टम ने जब पिनकोड मांगा तो कर्मचारियों की कोई तरकीब काम नहीं आई.
उन्होंने आसपास के कई पिनकोड जरूर डाले लेकिन सभी रिजेक्ट होते चले गए किन्तु 1849 पिनकोड डालने के बाद भी निराश कर्मचारियों ने महाराष्ट्र के जलगांव का पिनकोड डाला वैसे ही पूरी टीम में जोश भरने वाला ई-आधार का पेज ओपन हो गया. यहां से आधार अपडेट हिस्ट्री निकाली गई, जिससे अब तक किए गए बदलाव और नए पुराने मोबाइल नंबर भी हासिल हो गए. इसके बाद जाकर परिजनों से संपर्क हो पाया.