अपने जीवन में दो बार हरिद्वार आए गांधीजी
[1915 कुंभ में हरिद्वार में ही लिया था स्वच्छता का संकल्प]

हरिद्वार। राष्ट्रपिता बापू की जयंती पर कुंभ नगरी हरिद्वार भी उनकी हरिद्वार यात्राओं का सिंहावलोकन कर उनका स्मरण कर रही है। बापू अपने जीवन में दो बार हरिद्वार आए और उन्हें महात्मा की उपाधि भी यहीं हरिद्वार में मिली।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वर्ष 1915 और 1917 में हरिद्वार आए और उनकी हरिद्वार की यह यात्राएं उनके अपने जीवन के लिए भी विशेष रहीं। बापू के जीवन का मिशन बनी स्वच्छता का पहला संकल्प उन्होंने इसी धर्मनगरी पर लिया था। बापू अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर एक स्वयं सेवक के रूप में पहली बार 1915 कुंभ में हरिद्वार आए थे। इस दौरान उन्होंने मेले में यत्र तत्र गंदगी के अंबार देखे। जिसके बाद उन्होंने यहां न केवल गंदगी के खिलाफ और स्वच्छता को लेकर जनता के बीच अलख जगाई बल्कि स्वयं हाथों में झाडू लेकर साफ-सफाई भी की। बाद में यही बापू के जीवन का संकल्प बन गया, जो आज केंद्र सरकार का भी संकल्प है। बाद में राष्ट्रपिता बने बापू के यह यात्रा वृत्तांत उनकी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में उल्लिखित हैं।
दो वर्ष बाद 1917 में गुरुकुल कांगड़ी के महात्मा मुंशीराम जो बाद में स्वामी श्रद्धानंद हुए उनके निमंत्रण पर भी बापू हरिद्वार के गुरुकुल कांगडी आए। गुरुकुल के समारोह में ही स्वामी श्रद्धानंद ने गांधी का देश के प्रति त्याग और समर्पण देखते हुए उन्हें ‘महात्मा’ का अलंकरण दिया था। बाद में यह उपनाम जीवन पर्यंत गांधी जी के नाम के साथ जुडा रहा। गांधी जी ने रात्रि भोजन त्यागने और एक दिन में केवल पांच बार ही मुख से कुछ ग्रहण करने का संकल्प भी इसी तीर्थ भूमि पर लिया था।
बापू की हरिद्वार यात्रा से जुड़ी यह घटनाएं बाद में जीवन पर्यन्त उनके जीवन का हिस्सा बनी रही।