हरिद्वार: कई कलाकारों ने जमाई अभिनय की धाक, मंच संचालन में ‘वीर’ ने भी बनाई पहचान
हरिद्वार के रामलीला रंगमंचों में बड़ी रामलीला के नाम से जाने जानी वाली शहर की पुरानी रामलीला की अलग पहचान है। यहां एक से एक कलाकार हुए जिन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी।
हरिद्वार की पुरानी रामलीला की इसलिए भी अलग पहचान है कि इसके रंगमंच पर विभिन्न रामायण पात्रों का अभिनय करने वाले लोग समाज के विभिन्न क्षेत्रों से निकलकर आए और अपने अभिनय के बल पर कलाकार बन गये। इसके मंच पर अनेक नये पुराने कलाकारों ने पात्रों के रूप में अपनी छाप छोड़ी। पुरानी पीढ़ी आज भी लाला रोशनलाल वैद्ध रघुवीर बेदी, रघुनाथ शर्मा, हरद्वारी लाल, नत्थूलाल, साधुराम शर्मा, राजेंद्र गुप्ता आदि के अभिनय को याद करती है। बताया जाता है कि पचास के दशक में जब रघुनाथ शर्मा रावण का अभिनय करते थे तो फट्टों के रंगमंच पर रात के सन्नाटे में उनके पैरों की धमक दूर दूर तक गूंजती थी। सत्तर के दशक में जब बृजमोहन जोशी इंद्र के रोल में अपनी खनकती आवाज में मंथरा से कहते थे, ‘भरत अवध राज करें राम वन को जाएं’ तो पूरा दरबार सजीव हो उठता था। ताड़का के दमदार रूप में हरद्वारी लाल जैसी ताड़का फिर कभी मंच पर नहीं लौटी। दशकों तक भाट के रूप में राजाराम शर्मा, प्रेम व्याकुल और हरफनमौला कलाकार प्रेम नाचीज दर्शकों का मनोरंजन करते रहे। मेघनाद वध की लीला में मेघनाद बनने वाले वीरेंद्र गोस्वामी इतना आक्रामक हो उठते थे कि उनके सामने पात्र बनने से दूसरे कलाकार बचते थे।
रावण के अभिनय में देवीशरण शर्मा, पवन कुमार, गुरजीत सिंह हनुमान के रोल में ठाकुर रामसेवक, राजपाल शर्मा दशरथ के रोल में ओमप्रकाश सेठ ने दशकों तक अपने अभिनय का लोहा मनवाया। परशुराम के अभिनय में रमेश खन्ना अंगद के रोल में राजीव शर्मा और भरत के चरित्र में मुरारीलाल गुप्ता ने भी इस मंच पर अपनी छाप छोड़ी।
•मंच संचालन की भी थी पहचान•
हरिद्वार की रामलीला की मंच संचालन में भी अलग पहचान रही। राममूर्ति वीर के कुशल संचालन और उनकी वाणी को सुनने भी लोग दूर-दूर से आया करते थे। गंगापार दशहरे पर आतिशबाजी और पटाखों से अलग लोग उनकी ‘वाह जमालुद्दीन ‘ और ‘ठां..ठां..ठां’ सुनने आते थे।मंच संचालन में दूर दूर तक हरिद्वार की रामलीला का कोई सानी नहीं रहा।