भारतीय भाषाएँ हैं सांस्कृतिक विविधता, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द की धरोहर

भारतीय भाषाएँ हैं सांस्कृतिक विविधता, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द की धरोहर


हरिद्वार। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निर्देशानुसार श्रीभगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में भारतीय भाषा उत्सव उत्साहपूर्वक आयोजित किया गया। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्णित 22 भाषाओं के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना और आमजन को उनके प्रयोग हेतु प्रेरित करना रहा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. निरंजन मिश्र ने कहा कि मातृभाषा पर गर्व करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। मातृभाषा का सम्मान करने से ही हम अन्य भाषाओं का भी सही अर्थों में सम्मान कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत की सभी भाषाएँ समाज को जोड़ने का अद्भुत कार्य करती हैं और भारतीय संस्कृति की विविधता को संरक्षित रखती हैं।
महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ. रवीन्द्र कुमार ने अपने संबोधन में बताया कि भारतीय भाषाएँ न केवल सांस्कृतिक विविधता की वाहक हैं, बल्कि राष्ट्रीय एकता, साहित्य, इतिहास और सामाजिक सौहार्द की मज़बूत आधारशिला भी हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय संवाद, परम्पराओं और भावनात्मक जुड़ाव के लिए मातृभाषा आज भी सबसे प्रभावी माध्यम है। हमें दैनिक कार्यों में मातृभाषा का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए, ताकि स्थानीय भाषाएँ सुरक्षित रह सकें। कार्यक्रम में प्राध्यापकों और विद्यार्थियों के लिए बहुभाषी सम्मान, भाषाविशारद सम्मान तथा पंचभाषा प्रवीण सम्मान की घोषणा की गई। संस्कृत, हिन्दी और अन्य स्थानीय भाषाओं में प्रवीण सभी प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को बहुभाषी सम्मान प्रदान किया गया, जो महाविद्यालय के लिए गर्व का क्षण रहा। उत्सव का सफल संयोजन डॉ. सुमन्त कुमार एवं डॉ. कृष्ण चन्द्र ने किया। इस अवसर पर डॉ. आशिमा श्रवण, डॉ. आलोक सेमवाल, डॉ. प्रमेश बिजल्वाण, शिवदेव आर्य, आदित्यप्रकाश सुतार, एम. नरेश भट्ट, विवेक शुक्ला, डॉ. अंकुल कर्णवाल, मनोज गिरि सहित महाविद्यालय के सभी कर्मचारी तथा छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।

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