*आपदा के बाद दिनरात जुटी राहत एंव बचाव कार्य में*

देहरादून। उत्तराखंड में बार-बार आ रही प्राकृतिक आपदाओं के बीच एसडीआरएफ (स्टेट डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फोर्स) और एनडीआरएफ (नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फोर्स) की टीमें लगातार जीवनरक्षक बनकर सामने आ रही हैं। बीती रात चमोली ज़िले में बादल फटने की घटना हो या पिछले महीने धराली, थराली और बागेश्वर में आई तबाही—हर जगह इन जांबाज़ टीमों ने सबसे पहले मोर्चा संभालकर राहत और बचाव कार्य को अंजाम दिया। हर आपदा में सबसे पहले पहुँचने और आख़िरी तक डटे रहने वाली ये टीमें आज उत्तराखंड के लोगों के लिए सच्चे खेवनहार साबित हो रही हैं, जो कठिन समय में उम्मीद और भरोसे का दूसरा नाम बन चुकी हैं।
चमोली में कल देर रात बादल फटने की सूचना मिलते ही एसडीआरएएफ की टीमें अंधेरे और तेज़ बारिश के बावजूद तुरंत घटनास्थल के लिए रवाना हुईं। पहाड़ी रास्तों और मलबे से घिरे इलाकों में जोखिम उठाते हुए जवानों ने लापता लोगों को खोजने और फंसे परिवारों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का अभियान शुरू किया। एनडीआरएफ के जवानों ने भी स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर अस्थायी राहत शिविर और प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएँ मुहैया कराईं।
धराली और थराली में पिछले महीने की शुरुआत में हुई भारी बारिश और भूस्खलन में भी इन टीमों ने कई गांवों से लोगों को सुरक्षित निकाला। वहीं, बागेश्वर और रुद्रप्रयाग में आई आपदाओं के दौरान एसडीआरएफ व एनडीआरएफ ने नदी किनारे बसे परिवारों को रातभर के रेस्क्यू ऑपरेशन के जरिए बचाया। देहरादून में भी लगातार बारिश और जलभराव से निपटने में इन दलों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कठिन पहाड़ी भूभाग, मूसलाधार बारिश और सीमित संसाधनों के बावजूद एसडीआरएफ और एनडीआरएफ के जवान हर चुनौती का डटकर सामना कर रहे हैं। राहत सामग्री पहुँचाने से लेकर मेडिकल सहायता और सड़क मार्ग बहाल करने तक ये टीमें हर मोर्चे पर सक्रिय हैं।

*राहत कार्य में आधुनिक तकनीक*
आधुनिक उपकरणों के साथ-साथ विशेष प्रशिक्षित श्वान दल और हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरे मलबे में दबे लोगों को खोजने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। इन तकनीकों से रेस्क्यू ऑपरेशन तेज़ और अधिक प्रभावी हो रहा है, जिससे ज़िंदगियाँ बचाने में महत्वपूर्ण मदद मिल रही है।