लोगों को टीकाकरण के लिए मजबूर नही किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता।

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा कि किसी भी व्यक्ति को टीका लगवाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। शारीरिक अखंडता उसका मौलिक अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत वह टीका लेने से इनकार भी कर सकता है।

संक्रमण ज्यादा फैले इसके सबूत नहीं : जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की पीठ ने एक जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि टीका अनिवार्य करने से जुड़े आदेश जो राज्य सरकारों ने दिए हैं वे समानुपातिक नहीं हैं। इस तरह का कोई आंकड़ा अब तक सामने नहीं आया है जिससे पता चले कि टीका न लेने वालों से कोरोना के प्रसार का खतरा ज्यादा है।

तीन आधार तय किए: कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के हितों के मद्देनजर सरकारें प्रतिबंध लगा सकती हैं लेकिन ये प्रतिबंध तीन कसौटियों पर खरे उतरने चाहिए। पहला वैधता, दूसरा वैध आवश्यकता व तीसरा समानुपात, यह सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड के फैसले में तय किए हैं। लेकिन यहां क्या है, केंद्र व राज्य सरकारों ने कोई आंकड़ा नहीं दिया है कि बिना टीका वाले लोगों से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा है। इसके अभाव में तथा जब तक संक्रमण कम है, टीका अनिवार्य करने के आदेश को समानुपातिक नहीं कहा जा सकता।

आंकड़े जनता को मिलें: सर्वोच्च अदालत ने कहा कि टीका परीक्षण के सभी आंकड़ों को अविलंब जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

याचिका में क्या मांग: याचिकाकर्ता राष्ट्रीय टीकाकरण मिशन के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के सदस्य हैं। उनका कहना था कि बिना क्लीनिकल डाटा के सरकारें प्रतिबंध लगा रही हैं। टीका लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है और उन्हें बिना सूचनाएं दिए टीके के लिए स्वीकृति ली जा रही। यह संविधान के अनुच्छेद 21(जीवन और व्यक्तिगत आजादी का अधिकार) के विरुद्ध है।

सरकार बताए कि टीके लेने के दुष्प्रभाव क्या हैं।


● कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि टीका लेने के बाद लोगों पर उसका क्या दुष्प्रभाव हुआ, इसकी रिपोर्ट प्रकाशित की जाए।

● केंद्र ने बताया था कि 13 मार्च तक180 करोड़ टीके लगे और सिर्फ 77,314 लोगों में मामूली दुष्प्रभाव दिखे यानी सिर्फ 0.004 फीसदी में प्रतिकूल प्रभाव दिखा।

सरकार की टीकाकरण नीति तार्किक है। परीक्षण के जो डाटा प्रकाशित किए गए हैं वे मानकों तथा अनुषंगी कानून के अनुरूप हैं। ऐसे में यह नहीं कहा कि जा सकता कि नीति जल्दबाजी में बनाई गई है। – सुप्रीम कोर्ट

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